आज मैं हूँ – कल राख – फिर धुँआ हो जाऊँगा
हर रोज़ हर लम्हा कुछ और मरता जाऊँगा
ज़िन्दग़ी है ज़िन्दग़ी है चार पल की सिर्फ इतनी
तुम कहो या न कहो तुम – मैं तो ढलता जाऊँगा
हाथ से सुर्ख रेत जैसा – मैं फिसलता जाऊँगा
आज मैं हूँ – कल राख – फिर धुँआ हो जाऊँगा
-shally-
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